Satyanarayan Bhatnagar JI Ka Panna: Here you can find the writings of Hindi Sahitya Bhushan Shree Satyanarayan Bhatnagar's writings and thoughts.
Sunday, August 23, 2009
चींटी के नाम एक चिन्तन
इस पृथ्वी पर महत्वपूर्ण कौन है? इस प्रश्न पर यदि विचार किया जाए तो अलग अलग स्थान, समय और परिस्थिति के अनुसार अलग अलग उत्तर मिलेगे। हम पृथ्वी पर मनुष्य जाति को ही सर्वश्रेष्ठ मानते है क्योकि हममें विवेक और बुद्धि है और हमारे इस निर्णय को ही हम घोषित करते है किन्तु भगवान की दृष्टि में प्राणीमात्र समान है। गीता में भगवान कहते है कि प्राणी मात्र मेरे अंश है। इसमें छोटे बड़े का प्रश्न नहीं है। इस समता योग के सम्बन्ध में लगभग सभी धर्मशास्त्रों में यही स्वर गुंजायमान मिलता है इसलिए भले ही बुद्धि और विवेक के कारण हम अपने को सर्वश्रेष्ठ माने पर अनेक कोण है जिनमें पशु पक्षी भी हमसे आगे है उनकी सामाजिक व्यवस्था व अनुशासन हमसे श्रेष्ठ है।
मनुष्यों में समता योग पर सदा प्रश्न चिन्ह लगता रहा है यहाँ जाति, धर्म, रंग, क्षेत्र आदि के साथ पद-प्रतिष्ठा के अनुसार भी भेद पाया जाता है। एक श्रमिक और राष्ट्रपति के बीच भयानक अन्तर है। जबकि प्राण तत्व के अनुसार वे एक ही है। भगवान के राज्य में वे समान है। ऐसे ही चींटी और हाथी के बीच का अन्तर हम आँखों से देखते है और मानते है किन्तु भगवान का सन्देश स्पष्ट है कि चींटी होने में उसका कोई दोष नहीं है और हाथी होने में हाथी की कोई विषेशता नहीं है। इसलिए भगवान के राज्य में समता योग की दृष्टि होने से वे समान है और उनमें अन्तर देखना भगवान के दोष देखना है। इस सम्बन्ध में स्वामी विवेकानन्द ने जो कहा उस पर विचार कीजिए । वे कहते है ’एक एक तरंग को नहीं, सारे समुद्र को देखो। चींटी और देवता में भेद दृष्टि मत रखो। प्रत्येक कीट-पतंग तक प्रभु ईसा का भाई है। फिर एक को बड़ा, एक को छोटा कैसे कहते हो। अपने अपने स्थान पर सभी बड़े है।‘
हम चींटी को महत्व नहीं देते। क्या कभी आपने चींटी के विषय में चिन्तन-मनन किया है? आप कहेगे हाँ, यह सच है। भारत में आपको अनेक व्यक्ति मिल जाएंगे जो खुले स्थानों में चींटी को शक्कर-खोपरे का चुर्ण डालते दिखाई देगे। वे चींटी के प्रति दयालु भाव प्रकट करते दिखाई देगे लेकिन यदि आप खोज करेगें तो आप पाएगे कि ये दयालुपन उनमें कारण विशेष से है। वे शनि देव के कोप से बचने के कारण ऐसा करते है। कहते है कि चीटियों के प्रति यह दया दृष्टि रखने से शनि का कोप कम होता है और कृपा दृष्टि होती है। ऐसा बिना कारण शायद ही कोई करता हो।
चीटीं हमारे घरों में बहुतायत से पाई जाती है। ये छोटा सा जीव आपको झुण्ड के झुण्ड में भी मिल जाएगा और एक दो की संख्या में भी भ्रमण करता दिखाई देगा। कई घरों में तो चींटियों का कोप झुण्ड के रूप में इतना अधिक होता है कि परिवार इनको मारने के लिए बाजार मे मिलने वाला रसायनिक द्रव्य उपयोग करते है। रेखाएं खींचते है कि चींटी आगे न बढ़ सके। चींटी उन परिवारों के लिए एक समस्या बन जाती है और वे फिर दयालु नहीं रह पाते। भूल जाते है कि इस छोटे से जीव की हत्या करना भी उतना ही बड़ा पाप है जितना आदमी की हत्या करना। हत्या-हत्या है चाहे छोटे जीव की हो या बडे़ की। इसका अधिकार हमको आपको भगवान ने नहीं दिया है। चींटियों में भी भगवान का अंश है। उन्हे मारना या मारने का सोचना भी भगवान पर अत्याचार है। विचारक मेतास्तासिया कहते है ’किसी की जान लेना पृथ्वी पर सबसे अधम कृत्य है। इसे तो प्रभू पर ही छोड़ देना चाहिए।‘
कवि कबीरदास जी कहते है।
जिव मति मारो बायरो, सबको एकै प्रान।
हत्या कबहू न छूटि है, कोटिन सुने पुरान।।
कवि मूलकदास इस दृष्टि को और स्पष्ट करते हुए कहते है।
कुजंर चींटी पसू नर, सबमें साहिब एक।
काटै गला खुदाय का, करे सूरमा लेख।।
चींटी है सामाजिक प्राणी - चींटी मनुष्यों से अधिक सामाजिक प्राणी है। वह कर्मयोगी है। वह निरन्तर कर्म करती रहती है उसके समाज में एक व्यवस्था है। उस समाज व्यवस्था के अन्तर्गत वह अपने भोजन की तलाश में निकलती है। खराब मौसम के लिए वह अन्न एकत्र करती है। वह स्वयं के लिए नहीं वरन सम्पूर्ण समाज के लिए यह कार्य सतत करती है - नीति वचन 6/ 6
पुराना धर्म नियम में कहा गया है, ’हे आलसी! चींटियो के पास जा। उनके काम पर ध्यान दे और बुद्धिमान हो। उनके न तो कोई न्यायी होता है, न प्रधान और न प्रभूता करने वाला तो भी वे अपना आहार धूपकाल में करती है और करनी के समय अपनी भोजन वस्तु बटोरती है‘ इन अर्थो में चींटी कर्मयोगी होती है। सामान्य व्यक्ति से उसकी तुलना नहीं हो सकती । ध्यान रहे चींटी निरन्तर श्रम करते हुए यह कार्य करती है। वे अपने वजन से पचास गुना अधिक वजन भी मिलजुल कर उठा लेती है । वे कर्मयोगी है उनसे हमें सीखना चाहिए। इसीलिए जैम्स हेलन कहते है "छोटे जीवों की रक्षा से हमारा जीवन सफल होता है, उनके नाश से नहीं।"
हम करते है नाश - सामान्य रूप से चींटी को कोई मारना नहीं चाहता। हम सब चाहते है कि जीव की हत्या हमारे हाथों न हो पर हमारी उदासीनता और गलत आदतों के कारण चींटी की हत्या हो जाती है और हम ध्यान नहीं देते।
मेरा अनुभव है कि हम रसोई घर की सफाई का ध्यान नहीं रखते और हमारी खाध्य वस्तुएं खुली रह जाती है जिनकी ओर ये छोटा जीव आकृष्ट हो जाता है। तब वह बिना कारण मारा जाता है। चींटी को मिष्ठान आकर्षित करता है। यदि शक्कर के डब्बे में चींटी प्रवेश के लिए स्थान है तो आप पावेगे कि कुछ ही समय में उसमें ढ़ेर सारी चींटियां प्रवेश कर गई है। तब आप लाख प्रयत्न करेगे तब भी वे निकल नहीं पाएगी। उनकी मृत्यु निश्चित है।
क्या करें - यदि हम शक्कर का डब्बा ऐसा रखे कि चींटी प्रवेश न कर सकें और ठीक से बन्द करें तो चींटी प्रवेश नहीं करेगी। इसके बाद भी यदि चीटियां प्रवेश कर जाएं तो शक्कर में चार पाँच लौंग डाल दे। उसकी गन्ध मात्र से चींटिया अपने आप उस डब्बे से चली जाएंगी। आपको कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं होगी।
मिष्ठान मात्र के प्रति यदि यह सावधानी रखी जाए तो चीटियां अपनी हद पार नहीं करेगी। इसके अतिरिक्त तेल की बनी वस्तुए, बिस्कुट आदि के प्रति भी हमें अतिरिक्त सावधानी बरतना चाहिए।
झूठे बरतन - झूठे बरतनों में भी आपको चींटिया झुण्ड की झुण्ड मिलेगी। चाय का बरतन, कप बशी, दूध का गिलास आदि में आपकों ये चिपटी मिलेगी। उनका स्वभाव है यह। यहाँ उनकी हत्या बहुत अधिक होती है।
क्या करे - झूठे बरतनों से उनकी रक्षा करने के लिए बरतनों को धोकर बेसिन में रखिए। एक बार आपने बरतन धोकर रख दिए फिर उसमें न चींटी आएगी, न कीटाणु विषाणु पनपेगे। फलस्वरूप रसोई घर में जो दुर्गन्ध व्याप्त रहती है, वह नहीं रहेगी।
खाना खाने के स्थान को, बिस्तर को साफ सुधरा रखे, वहाँ गन्दगी, झूठन यदि गिर गई है तो तुरन्त साफ करें, आप देखगे फिर न वहाँ चींटी आएंगी व आप परेशान भी नहीं होगे। चींटी आपको काटेगी भी नहीं। चींटी जैसा छोटा जीव आपकी कृपा सावधानी चाहता है जो सफाई की आदतों के कारण आपको बनाता है स्वस्थ। आप चींटी की हत्या करने के पाप से बच जाते है। चींटी की हत्या होने पर यदि आप दुःखी नहीं होते तो हमारी मनुष्यता में कमी आती है। हममें हिंसा का भाव पनपता है। क्रूरता आती है व दयालुता का गुण कम होता है। इसलिए यह हमारा दायित्व है कि हम सचेत हो और ध्यान रखे कि प्रकृति के इस जीव के कार्य कलापों में हमारे आलस्य से व्यवधान न हो।
भगवान महावीर ने इसीलिए चींटी को बचाकर चलने के निर्देश दिए थे। चींटी के नाम का उल्लेख करने का एक मात्र कारण यही था कि वे छोटे से छोटे जीव के प्रति करूणा का भाव जगाना चाहते थे।
हम चींटी के जीवन से कुछ सीख, प्रेरणा ले। कर्मवीर बने तो शायद हमारा अधिक भला हो। बच्चों को भी इस छोटे से जीव के सम्बन्ध में जानकारी देंवे।
सत्यनारायण भटनागर
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रसोई घर में हमलोग तो लक्ष्मण रेखा का प्रयोग करते हैं .. पर आइंदा नहीं करेंगे .. साफ सफाई रखना और ढक्कन अच्छी तरह बंद रखना भी चीटियों से बचने का विकल्प है .. सुंदर जानकारी के लिए धन्यवाद !!
ReplyDeleteबहुत सार्थक एवं अनुकरणीय पोस्ट....साधुवाद आपका...
ReplyDeleteनीरज
aabhaar aadarniy
ReplyDeleteChiti ka kaunsa bachan hoga
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