Satyanarayan Bhatnagar JI Ka Panna: Here you can find the writings of Hindi Sahitya Bhushan Shree Satyanarayan Bhatnagar's writings and thoughts.
Tuesday, October 13, 2009
बच्चों के दोस्त बनिए
आजकल बच्चों के लिए खिलौनों का बाजार खूब सजा-धजा है। विभिन्न प्रकार के रंगों वाले खिलौने दुकानों पर प्रदर्शित किए जा रहे हैं, जो बच्चों को ललचा रहे हैं। इन खिलौनों में इलेक्ट्रॉनिक खिलौने भी हैं, जो पावर सेल से चलते हैं। इन खिलौनों की कीमत आसमान तक छूती है। हर डिजाइन के ऐसे-ऐसे खिलौने हैं कि हम हैरत में पड़ जाएं।
अब बच्चों के लिए खिलौने खरीदने निकले तो सस्ते महंगे का सवाल कैसा? बच्चे हमारे प्यारे हैं। आंख के तारे हैं। उनके लिए खिलौने खरीदते समय सस्ते खिलौने लेना गवारा नहीं। खिलौने भले ही बच्चों के लिए हों, किन्तु वे हमारे स्टेटस सिम्बल भी तो हैं। आजकल हमारे मित्र, रिश्तेदार आदि आते हैं, तो उन्हें बच्चों के साथ खिलौने भी दिखाए जाते हैं। कितने खिलौने हैं? किस मूल्य के हैं? कहां से खरीदे?- इन सवालों पर चर्चा होती है। बच्चे या तो मिलजुलकर उनसे खेलते हैं या आपस में लड़ते हैं। लेकिन खिलौने प्रदर्शन की वस्तु तो हो ही गए हैं।
खिलौने बच्चों का खेल हैं। उनकी दुनिया खिलौनों की दुनिया है। उनसे मनोरंजन ही नहीं होता, वे खिलौनों से एक रिश्ता भी कायम कर लेते हैं। वे खिलौनों के साथ आनन्द मनाते हैं। बच्चों के लिए खिलौनों का मूल्य कोई अर्थ नहीं रखता। वे तो खिलौनों से खेलते हैं। एक कल्पना जगत का निर्माण करते हैं।
आपने भी बच्चों को देखा होगा। वे तमाम तरह के खिलौने होने के बाद भी जूते-चप्पलों से खेला करते हैं। आपके भारी भरकम जूते वे अपने छोटे से पैर में डाल चलाते हैं। उसमें मगन होते हैं। छोटे बच्चे घर के बर्तनों से भी खेलते देखे जा सकते हैं। उन्हें झूठमूठ की चाय बनाते आप देख सकते हैं। वे आपको भी वह चाय पेश कर खुश होते हैं। बच्चे किसी भी चीज से खेल सकते हैं। हमारे लाए खिलौने तो एक बहाना हैं।
परिवार में जब भोजन बनता है तब बच्चे अक्सर रोटी का आटा मांगते हैं। जब उन्हें मिल जाता है तो वे उससे कुछ न कुछ बनाने में मगन हो जाते हैं। लेकिन बच्चों के लिए सबसे अच्छा खेल गुड़ियों का है। कपड़े के ये खिलौने उनका संसार बसा देते हैं। गुस्सा आ गया तो फेंक देंगे, वरना छाती से चिपटा कर सो भी सकते हैं। वे अपने इन खिलौनों से बातचीत भी करते हैं। लड़ते-झगड़ते और फिर दोस्ती भी कर लेते हैं।
जब हम छोटे थे तब कागज की नाव बनती थी। हवाई जहाज भी कागज के उड़ाए जाते थे। तमंचा भी कागज का बनता था। ये हवाई जहाज और नाव सृजन के बीज बोते थे, या कहें कि वह एक नया संसार बनाने की शुरुआत थी। असल में बच्चों के लिए सबसे अच्छे खिलौने वे हैं जिनमें सबसे कम पैसे की जरूरत होती है। हम जब घर में ही घर की चीजों से खिलौने बनाते हैं तो बच्चों को समय देते हैं। यह समय देना प्रेम है। इससे अपनत्व पैदा होता है। बच्चों को इससे गहरी खुशी मिलती है। सच तो यह है कि हमारे पास वक्त नहीं है, सिर्फ पैसा है। इसलिए बच्चों को बाजार से खिलौने दिला कर अपने कर्तव्य की पूर्ति समझ लेते हैं।
बच्चों के साथ खेलिए। यह सच्ची खुशी देने वाला है। उनके साथ खेलने की शर्त है कि आप खुद बच्चे बन जाएं। बुद्धि को एक तरफ रख दीजिए और देखिए कि बच्चे की खुशी का ठिकाना नहीं रहेगा। आप दसियों तरीके से बच्चों के साथ खेल सकते हैं। किसी बड़े तामझाम की जरूरत नहीं, कोई भारी-भरकम खर्च नहीं। आप बच्चे के साथ चित्रकारी का आनंद भी ले सकते हैं। इसके लिए भी महंगे रंगों और कैनवास की जरूरत नहीं। फिर देखिए कला का कैसा संसार बसता है।
खेल और खिलौने बच्चों को शिक्षा देने का पहला सोपान हैं। कवि जायसी पदमावत में कहते हैं, ' धनि सो खेल खेल ही प्रेमा। ' अर्थात वह खेल धन्य है जो प्रेम से खेला जाए। यह बात बच्चों को सिखाने की जरूरत नहीं। वे सीखे हुए हैं। इसे हम वयस्कों ने सीखना है।
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