Wednesday, October 14, 2009

यदि राम को वनवास नहीं हुआ होता


राम को चौदह वर्ष का वनवास माता कैकई के आदेश से राजा दशरथ ने दिया। कोई भी ऐसा आदेश प्रथम दृष्टि में दंड माना जाता है। राम, राजा दशरथ के सबसे बडे़ बेटे थे। परम्परा के अनुसार उनका राजतिलक होना चाहिए था। राजतिलक की तैयारी भी थी, किन्तु इसी बीच दासी मन्थरा के षडयंत्र पूर्ण मंतव्य को सुन माता कैकई अपने पुराने वर के रूप में राम का वनवास मांग लेती हैं। और राजा दशरथ को न चाहते हुए भी विवश भाव से उसे स्वीकार करना होता है।

राम राजा बनते-बनते वनवास के लिए सहर्ष प्रस्थान कर जाते हैं। इसे हम क्या कहेंगे? यदि हमारे साथ ऐसा कुछ घटित हो तो हम उसे आज किस रूप में ग्रहण करेंगे? क्या वनवास चले जाएंगे? क्या दुनिया उसे दुर्भाग्यपूर्ण नहीं कहेगी? यह प्रश्न है।

राम का वनवास सम्पूर्ण रामायण की सबसे महत्वपूर्ण घटना है। विचार कीजिए कि यदि राम चन्द्र को वनवास नहीं मिलता तो रामायण की कथा क्या होती? क्या यह कथा अपना दम नहीं तोड़ देती? राम के राज्याभिषेक के बाद तो जो भी कथा बनाई जाती, वह सिर्फ राजा राम की ही होती।

लेकिन रामायण की कथा एक जन नायक की कथा है, जो दुर्भाग्य के क्षणों में भी संघर्षरत रह कर सभी नैतिक मूल्यों को बरकरार रखता है। अपने या समाज के मूल्यों पर कहीं समझौता नहीं करता। उन्होंने वनवास को दुर्भाग्य नहीं माना। अपने आचरण से उन्होंने यह बताया कि जीवन में सब कुछ अनुकूल नहीं होता। अनुकूल का जुड़वां भाई है प्रतिकूल। परिवर्तन चक्र में एक के बाद दूसरे का आना स्वाभाविक है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। सुख है तो दुख आएंगे ही। वसन्त है तो पतझड़ का इन्तज़ार कीजिए। दिन है तो रात भी आएगी।

राम ने पिता के आदेश का सहर्ष पालन कर प्रकृति के इस नियम को स्वीकार किया है। गीता में इसे ही समता योग कहा गया है। गीता कहती है, समता योग उच्चते (2/48)। खराब से खराब समझे जाने वाले समय की भी जीवन में उपयोगिता है।

दुर्भाग्य भी पाठशाला है- हमारा सामान्य अनुभव यह है कि जीवन में दुर्भाग्य की पाठशाला में जो भी प्रवेश करता है, वह पहले तनावग्रस्त होता है। अवसाद उसे घेर लेता है। वह निराश-हताश हो जाता है।

लेकिन राम दुर्भाग्य के इन क्षणों को पहले से पहचानते थे। उन्हें अनुभव था वनवास का। वे जानते थे क्या होता है वनवास में। और कुशलतापूर्वक इन परिस्थितियों से कैसे निपटा जाता है। वे जानते थे कि कांटों की झाड़ियों में भी पुष्प खिलते हैं। जंगल में भी फल-फूल हैं। हरियाली, पक्षियों का संगीत है और इस दुनिया का आनन्द लिया जा सकता है। दुखद क्षणों को सुखद क्षणों में बदलने का धैर्य ही वह कौशल है जो राम का वनवास हमें सिखाता है।

वनवास में क्या मिला राम को - राम को चौदह वर्ष का वह वनवास एक शिक्षालय के रूप में मिला। वे जान पाए एक सामान्य वनवासी के जीवन को, उसके सुख-दुख को, उसके संघर्ष को, उसकी मनोदशा को और कठिनाई भरे जीवन को। एक राजा को अपनी राजधानी और महल में यह सब जानने, अनुभव करने के लिए अन्य कोई जीवित शाला नहीं हो सकती। रामराज्य के सुशासन की कथा वनवास से प्रारम्भ होती है।
राम को यह वनवास काल प्रकृति की गोद में बिताने से प्रकृति के रहस्यों का गूढ़ अनुभव हुआ। पशु-पक्षी, विभिन्न प्रकार के वृक्ष, उनके फल-फूल -सभी उनको अपने सहायक जैसे लगे। इसके माध्यम से हमें समझाया गया है कि प्रकृति की गोद वास्तव में भगवान की गोद है। वहां बैठकर जीवन के गुण सीखे जा सकते हैं।
राम ने वनवास में ऋषि- मुनियों का सान्निध्य प्राप्त किया। उनके आश्रम देखे। उनसे सत्संग किया उनसे कथाएं सुनी। प्राचीन स्थलों का परिचय प्राप्त किया और राक्षस संस्कृति से उत्पन्न समस्याओं को निकट से जाना।

1 comment:

  1. नयी और अलग सोच, जीवन मूल्यों को समझाने वाली रचना है. पधकर बल मिला.
    दीपावली की शुभकामनाएँ...

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