Sunday, October 11, 2009

आकाश को देखने का समय निकालिए


हम धरती को माँ की तरह पूजते हैं। उसके प्राकृतिक सौंदर्य को देख गदगद हो जाते हैं, पर हमारी दृष्टि आकाश की ओर कभी-कभी ही जाती है। आकाश भी हमारी प्रकृति का अंग है। यदि आप आकाश की ओर निहारें तो उसमें बनने वाले रंग-बिरंगे चित्रों को देखकर सब कुछ भूल जाएं।


पृथ्वी की तरह आकाश का भी अपना परिवार है। सूर्य है चमकता-दमकता, तो शांत है चंद्रमा। ग्रह हैं, नक्षत्र हैं, आकाश गंगा है, दिशाएं हैं, क्षितिज है, उल्का और पिंड हैं। आकाश देता है पुष्पों को हीरे के कणों की तरह ओस। आकाश की चुप्पी है तो उसमें बादलों की गड़गड़ाहट भी है। उससे उत्पन्न विद्युत की चकाचौंध भी।

छान्दोग्योपनिषद में कहा गया है, 'आकाश उत्कृष्ट है।'  सूर्य जब उदय होता है तो उसकी किरणें दूर-दूर तक लालिमा का अद्भुत सौंदर्य आकाश में बिखेर देती हैं। इसी के साथ पक्षियों का उड़ना, गोते लगाना, चहचहाना भी आरम्भ हो जाता है। कभी क्षितिज पर बादल हों तो उन्हें चीर कर सूर्य की किरणें आकाश के विशाल कैनवास पर रंग बिखेरती हैं। सूर्योदय एक दृश्य संदेश है कि उठो, जागो, कर्मरत हो, आगे बढ़ो। उसका यह सन्देश सभी पशु-पक्षी और मानव एक साथ सुनते हैं।

आकाश खेल का मैदान है : आकाश की भाषा मौन है। जो उसकी मौन भाषा समझता है, वह आकाश को निहार कर चिन्तन में डूब जाता है। आकाश कभी खाली नहीं रहता। उसमें हर समय चित्र बनते-बिगड़ते रहते हैं। आकाश में पक्षी उड़ते हैं। वे मुक्त हैं विचरण के लिए। आकाश पक्षियों के लिए एक खेल का मैदान है। उसमें वे अपने पदचिन्ह नहीं बनाते। आकाश में हवा है, पर पक्षी उड़ते हुए कोई लहर पैदा नहीं करते। आकाश में कोई बैरियर नहीं बना है।

पृथ्वी का हर प्राणी ऊपर और ऊपर उठना चाहता है। कल्पना में उड़ना चाहता है। आकाश के प्रति प्रबल आकर्षण है प्राणी मात्र में। इसीलिए आदमी गननचुम्बी इमारतें बनाता है। वृक्ष अपनी ऊँचाई को बढ़ाता हुआ आसमान को चूमने की कोशिश करता है। आदमी का मन उड़ता है आकाश में। जो हल्का हो वह आकाश में उड़ सकता है। जो अहंकार से भरा हो, वह आसमान नहीं छू सकता। आसमान छूने के लिए चाहिए पक्षी सा सरल, सहज और भोला स्वभाव।

आकाश है एक विशाल कैनवास : इसी पर उके री जाती है उषा की लालिमा, रजनी की कालिमा, चांद, तारों और नक्षत्रों की जगमगाहट। आकाश के विशाल कैनवास पर सुबह, दोपहर और संध्या को अलग-अलग रंग रहते हैं। रात में आकाश गंगा का दूधिया रंग आप उसी में देख सकते हैं। रात के अन्धकार का सन्नाटा आप आकाश में ही महसूस करते हैं। सितारों का टिमटिमाना वहीं होता है। आकाश मौसम के साथ अपने रंग बदलता है। बादलों से भरा आकाश कभी दैत्य सा विकराल दिखता है और कभी हाथी सा अलमस्त।

कालिदास ने मेघदूत में इसका वर्णन इस प्रकार किया है:

' उस (यक्ष) ने आषाढ़ मास के प्रथम दिन उस पर्वत की चोटी पर झुके हुए मेघ को देखा तो ऐसा प्रतीत हुआ मानो कोई हाथी मिट्टी का ढूह अपने मस्तक से गिराने का खेल खेल रहा है।'

आकाश में चाहे जितने चित्र बनें पर वे अपने आप बिगड़ते और मिटते भी रहते हैं। आसमान कभी गन्दा नहीं होता -काले बादल हों या उषा की लालिमा -आकाश हमेशा निर्मल और स्वच्छ बना रहता है।

आकाश देता है आशीर्वाद : आकाश केवल रिक्त जगह का नाम नहीं है। पृथ्वी की तरह आकाश भी प्रभु की लीला का प्रदेश है। हम ऐसी कल्पना करते हैं कि ईश्वर आकाश में बादलों के ऊपर कहीं रहता है। इसलिए जब भी ईश्वर से सम्बन्धित कोई बात होती है हम आसमान की ओर देख कर प्रभु इच्छा को धन्यवाद देते हैं। हम मानते हैं कि ईश्वर ने अपने आप को सर्वोत्तम रूप में आकाश में छिपा रखा है। हमारे अपने अन्दर भी है आकाश। अपने अन्दर स्थित आकाश को देखने का समय निकालिए, आपको आनन्द का सागर मिल जाएगा।

3 comments:

  1. बहुत सही कहना है आपका !!

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  2. आनंद आ गया आपका लेख पढ़ कर...सुन्दर शब्दों में कमाल की जानकारी दी है आपने...बहुत बहुत धन्यवाद...
    नीरज

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  3. वाकई आकाश तो आकाश है इसकी संभावनाए व सीमाए अनंत है. जरूर इसको देखने के लिये समय निकालना चाहिये

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