जीवन में कर्म का बहुत महत्व है। हम एक क्षण भी बिना कर्म किए रह ही नहीं सकते। बिना कर्म किए रहना ही एक सजा है। कर्म जीवन का यज्ञ है। कर्म के बिना हम जीवन यापन नहीं कर सकते। इसलिए गीता में कर्म योग को प्रमुख स्थान दिया गया है। कर्म का सिद्धांत बड़ा गहन है। हम सब कर्म के अधीन है। हमारे सारे पाप पुण्य कर्म से तय किए जाते है। कर्म जिस भाव से किए जाते है। उसका अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। कर्म हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव डालते है। हमारी आयु सौ वर्ष हो। हम सक्रिय रूप से जीवन व्यतीत करें। यह हमारी कामना होती है।
क्या हमारा जीवन सतत् कर्मो पर निर्भर करता है। क्या हम कर्मो के अधीन स्वास्थ और आयु पाते है ? यह एक ऐसा प्रश्न है जिस पर विचार की आवश्यकता है। कर्म के साथ विश्राम का भी अपना महत्व है। हमारा जीवन केवल कर्म करने पर प्रसन्नतापूर्वक निर्वाह नहीं हो सकता। विश्राम भी आवश्यक है। दौड़ जरूरी है किन्तु हम कहाँ जाना चाहते है? दौड़ का परिणाम क्या होगा, यह भी विचार जरूरी है अतः कर्म के साथ विचार भी आवश्यक है। विश्राम कितना आवश्यक है, यह भी एक विचारणीय प्रश्न है। आइए देखे, पढे़ इस समाचार को।
आराम करें उम्र बढ़ाए - फुन्दा(जर्मनी) क्या आप शतायु होना चाहते है? अगर हाँ तो काम करना छोडिये और आराम कीजिए। जर्मनी के एक वैज्ञानिक पीटर एकस्ट का कहना है कि लम्बी दूरी तक दौड़ने की बजाय घर में बैठकर आराम करने वाले या स्कवैश खेलने के बजाय दोपहर की नींद लेने वाले व्यक्तियों के अधिक समय तक जीवित रहने की संभावना रहती है। उनका कहना है कि खाली समय में धीरे-धीरे घुमना, भूख से ज्यादा न खाना ही अच्छे स्वास्थ की निशानी है। लेकिन बहुत जल्दी-जल्दी चलना स्वास्थ खराब करता है। प्रो. एक्सट का कहना है कि पचास वर्ष की उम्र पार कर चुके व्यक्ति अन्य कार्यो के लिए आरक्षित उर्जा का उपयोग करके लम्बी दूरी तक दौड़ते है और इस कारण उनकी यादाश्त कमजोर हो जाती है और वे समय के पहले सठिया जाते है। उन्होने सुबह जल्दी जागने को दिनभर की सुस्ती का कारण बताते हुए सूर्योदय के बाद तक सोने की सलाह दी।
आराम हराम है - यह समाचार हमारी धारणाओं को उलटता है। हम समझते है आराम हराम है। इस व्यस्त दुनिया में आराम के लिए समय कहाँ? दिन के चैबिस घंटे आज कम पड़ रहे है। सफलता पाने के लिए शिखर पर पहुँचने के लिए एक अंधी दौड़ चल रही है, उसमें भला विश्राम के लिए कैसे सोचा जा सकता है। खरगोश विश्राम करने ठहर गया तो कुछए से हार गया। भला इस प्रतियोगिता के युग में आराम कैसा?
इस बिन्दु पर विचार आवश्यक है। आराम उम्र बढ़ाने के लिए सचमुच आवश्यक है। हम सफलता की अंधी दौड़ में भौतिक सफलता तो पा सकते है पर स्वास्थ नहीं। इस दौड़ में आराम हराम घोषित कर हम बीमारियां बुला सकते है। स्वास्थ बिगाड़ सकते है और हमारी प्राप्त की गई भौतिक सफलता, समृद्धि पर प्रश्न चिन्ह खड़े कर सकते है। लम्बी उम्र पाने के लिए आराम उतना ही आवश्यक है जितना कार्य करना, सक्रिय रहना। आज तक जो शिखर पर पहुँचे है उन्होने विश्राम के इस तत्व को याद रखा है।
लम्बी उम्र का रहस्य - लम्बी उम्र का भौतिक सफलताओं से कोई संबंध नहीं रहा है। ऐसे बहुत से कारक है जो लम्बी उम्र और स्वास्थ के कारक है जिन पर हम ध्यान ही नहीं देते। यदि हम उन पर ध्यान दें तो अंधी दौड़ पर अपने आप नियंत्रण लग जाएगा।
ईर्ष्या और क्रोध - ईर्ष्या और क्रोध लम्बी आयु के दुश्मन नम्बर एक है। इन्हे भगवद् गीता में नरक का द्वार कहा गया है। आज की प्रतियोगिता की अंधी गलाकाट जीवन पद्धति में ईर्ष्या एक आवश्यक प्रेरक तत्व है। ईर्ष्या के बिना प्रतियोगिता का विचार ही हम नहीं कर सकते। एपोॠफा धर्मग्रन्थ में कहा गया है, ईर्ष्या और क्रोध जीवन को छोटा कर देते है ’ इसलिए जरूरी है कि हम लम्बी दौड़ के इस जीवन में ठहर कर विचार करें।
सदाचार - लम्बी उम्र और अच्छे जीवन के लिए सदाचार का होना आवश्यक है। यदि हम दैविय गुणों से पूर्ण होंगे तभी हमारे जीवन में उदारता, त्याग, प्रेम, सहयोग ,क्षमा जैसे गुण होगे। हम ईर्ष्या, द्वेष से अलग रहेंगे। लम्बी और आनन्दपूर्ण जीवन के लिए सदाचारी जीवन आवश्यक है। मनुस्मृति में कहा गया है, ’सदाचारी, श्रद्धावान और ईर्ष्या रहित मनुष्य सौ वर्ष जीवित रहता है। यदि अन्य गुण कम हो या न भी हो यदि सदाचार के गुण व्यक्ति में है तो वह प्रतियोगिता से बाहर रहेगा, तनाव रहित रहेगा और लम्बी आयु पावेगा। ’
द्रव्य शुद्धि कर्मो की शुद्धि - लम्बी आयु के लिए द्रव्यशुद्धि और कर्मो की शुद्धि भी आवश्यक है। यदि हम समाज द्रोही गतिविधियों में संलग्न रह कर अधिकतम् धन अर्जन की प्रतियोगिता में सलंग्न होगे तो भले ही भौतिक समृद्धि हम पा ले किन्तु लम्बी आयु नहीं पा सकते। भारतीय ग्रन्थ योग वशिष्ट में कहा गया है , ’मनुष्यों की आयु कम व अधिक होने में देशकाल, क्रिया, द्रव्यशुद्धि अशुद्धि और स्वकर्मो की शुद्धि -अशुद्धि कारण होते है ’ लम्बी आयु के लिए इन गुणों को सदाचार के अन्तर्गत ही मानना चाहिए।
भोजन - भोजन का स्वास्थपद व स्वच्छ मिलना भी आयु के लम्बे व छोटे होने से सम्बन्ध रखता है। हिन्दी में एक कहावत है ’ कासाभर खाना आसा भर सोना ’ लम्बी आयु का कारक है । उपरोक्त सभी तत्वों में व्यायाम का कहीं उल्लेख नहीं है। यदि हम खूब क्रियाशील हो और व्यायाम भी करे तब भी इस बात को सुनिश्चित रूप से घोषित नहीं किया जा सकता कि हमारी आयु लम्बी होगी किन्तु ईष्या, द्वेष रहित सदाचार भरी आराम दायक जिन्दगी निश्चित ही लम्बी होगी।
आराम करे, उम्र बढ़ाए का नारा निश्चित रूप से शान्त जीवन जीने का सन्देश है। यह सन्देश कहता है लम्बी दूरी की दौड़ दौड़ना व्यर्थ है। इस दौड़ की व्यर्थता दौड़ के अन्त में पता चलती है जब हाथ में कुछ नहीं आता, तब ही दौड़ की व्यर्थता का ज्ञान होता है। इस तथ्य को साहित्यकार शेक्सपियर ने रोमियों -जुलियट में इस प्रकार कहा है’ ’’बुद्धिमता के साथ और धीमे चलों, जो तेज भागते है उन्हे ठोकर लगती है ’’ स्वामी रामतीर्थ ने इसी बात को इस प्रकार कहा है, ’’ सभी सच्चा काम आराम है ’’ इस दृष्टि से जर्मन वैज्ञानिक के शोध पर विचार करेगे तो लगेगा कि अन्धी दौड़ व्यर्थ है। तनाव उत्पन्न करने वाली है। हम घड़ी पहनते भी है और समय की पाबन्दी की बात भी करते है किन्तु कभी घड़ी के कांटे के अनुसार समयबद्ध कार्य नहीं करते क्योकि घड़ी के कांटे को महत्व देने से जीवन में तनाव आता है। काम का अपना महत्व है किन्तु काम के साथ कठोरता का कोई भी तत्व काम के आनन्द को समाप्त कर देता है। यही कारण है कि प्रतियोगिता में उतरे अधिकांश युवा जवानी में वृद्धावस्था की बीमारियों से ग्रसित हो रहे है। कमरदर्द, पीठदर्द, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, हृदय रोग, अवसाद, तनाव आज युवाओं में भी पाया जा रहा है। युवाओं और किशोरों में आत्महत्या की प्रवृति बढ़ रही है। हिन्सा बढ़ रही है जो उनके जीवन में आई निराशा का परिणाम है। इसलिए धीमें चलो, शान्त चलों और लम्बी आयु प्राप्त करो , यही जीवन की सच्चाई है।
आज तक दुनिया में जो भी महत्वपूर्ण मानव कल्याण के शोध हुए है, वैज्ञानिक उपकरण प्राप्त किए गए है वे सब शान्त, एकाग्र, धैर्यपूर्वक निरन्तर किए गए प्रयोगों के फल है। जल्दबाजी में तेजी से कोई भी महत्वपूर्ण कार्य आज तक नहीं हुआ। एक कहावत प्रसिद्ध है जल्दी काम शैतान का। अतः जीवन में यदि कुछ महत्वपूर्ण प्राप्त करना है तो आराम से, तनाव रहित होकर ही पाया जा सकता है। इसलिए यदि कोई वैज्ञानिक शोध कर यह कहता है कि आराम करें, उम्र बढ़ाए तो उस पर विचार किया जाना चाहिए। श्रीमद् भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण कर्मयोग की प्रेरणा देते है किन्तु कर्मयोग में भी अन्धी दौड़ के लिए कोई सन्देश नहीं है। हमारी योग्यता, क्षमता, परिस्थिति, वातावरण और शक्ति के अनुसार हम जो अधिकतम पूर्ण गुणवत्त्ता के साथ कर सके, वहीं करने की प्रेरणा उसमें है। अन्धी गलाकाट प्रतियोगिता तो कामना और स्वार्थों के कारण होती है जिसका श्रीभगवत् गीता में निषेध है। किसी भी धर्म ग्रन्थ में इस प्रकार की प्रतियोगिता का समर्थन नहीं है जो हम आधुनिकता के नाम पर अपना रहे है। बाल्मीकि रामायण में कहा गया है जो कर्म के फल का विचार न कर केवल कर्म के लिए दौड़ता है, उसका फल मिलने के समय उसी प्रकार शोक करता है जैसे ढ़ाक का वृक्ष सींचने वाला करता है। लम्बी उम्र और शान्त जीवन के लिए स्वास्थ पद भोजन और पूर्ण विश्रामदायक नींद ही आवश्यक है जिसके लिए तनावरहित जीवन आवश्यक है। इसलिए व्यर्थ की दौड़ पर विचार कीजिए और आरामदायक चिन्तामुक्त जीवन का प्रारम्भ कीजिए। इससे आपकी उम्र तो बढ़ेगी ही, अन्तरात्मा की आवाज सुनने का समय मिलेगा, सही निर्णय होगे, सफलता आपका इन्तजार करेगी। व्यर्थ की दौड से अन्त में निराशा के सिवाय कुछ भी नहीं मिलता।
सही कहा है आज की दौड़ती दुनिया को ऐसे लेखों के माध्यम से कुछ रोकना जरुरी है !! यार कम से अकम थोडा तो आलस करो !!!
ReplyDeleteबहुत उपयोगी चिन्तन ! लिखते रहें।
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